देवास में दलित युवकों की हिरासत में मारपीट – अरुण यादव ने पुलिस अधिकारी को निलंबित करने की मांग

देवास में दलित युवकों की हिरासत में मारपीट – अरुण यादव ने पुलिस अधिकारी को निलंबित करने की मांग
30 सितंबर 2025 11 टिप्पणि Kaushal Badgujar

जब अरुण यादव, पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस नेता, ने देवास दलित युवकों की हिरासत में मारपीट का वीडियो सोशल मीडिया पर डाल दिया, तब देवास जिले के तीन युवकों – रवि अजमेरी (21), रितेश अजमेरी (23) और रितेश सीनम (23) – के हाथ‑पैर पर बंधी पट्टियों और टूटे नाखूनों की तस्वीरें पूरा राज्य हिला गईं। इस घटना के बाद मध्य प्रदेश पुलिस ने स्वतंत्र जांच का आदेश दिया और पुनीत गहलोत, पुलिस अधीक्षक (एसपी) ने मामला साफ़ करने का आश्वासन दिया।

पृष्ठभूमि: मूर्ति तोड़फोड़ और गिरफ्तारियों की कहानी

6 अगस्त को देवास शहर के औद्योगिक क्षेत्र में दो मैकेनिकल मूर्ति निर्माण केंद्रों में भगवान गणेश और एक स्थानीय देवी की मूर्तियों को तोड़ने का मामला उजागर हुआ। स्थानीय पुलिस ने 50 से अधिक सीसीटीवी कैमरों की फुटेज का अध्ययन किया और ऊपर नामित तीन युवकों को पहचान कर गिरफ्तार किया। अधिकारियों का कहना है कि वीडियो में दिखाए गए क्षति की पुष्टि फ़ुटेज से भी हो गई थी, इसलिए गिरफ्तारी ‘पुख्ता सबूत’ के आधार पर की गई।

विवरण: हिरासत में alleged मारपीट के आरोप

गिरफ़्तारी के 24 घंटे बाद, आरोपित युवा दावा करते हैं कि उन्हें बावडिया थाने में पुलिस इन्क़्वायरी रूम में ‘तीसरे दर्जे की यातना’ दी गई। उनके हाथ‑पैर पर पट्टियाँ बांध दी गईं, नाखून तोड़ दिए गए और शरीर पर कई गहरी चोटें दर्ज की गईं। वीडियो में उनकी पीड़ित शारीरिक स्थिति स्पष्ट दिखती है – खून के धब्बे, टेढ़े‑मेढ़े निशान और टूटे नाखून।

इन आरोपों पर अरुण यादव ने कहा, "मध्यप्रदेश पुलिस की गुंडागर्दी चरम पर। दलित युवकों को बिन कारण बेइमानी से पीटा गया है।" उन्होंने डीजीपी से तुरंत दोषी पुलिसकर्मियों को सस्पेंड करने की माँग की।

प्रतिक्रिया: राजनीति, पुलिस और जनता की राय

कांग्रेस नेतृत्व ने तुरंत इस मामले को ‘समुदाय के खिलाफ पुलिस अत्याचार’ के रूप में लेबल किया। अरुण यादव ने एक्स पर साझा किए गए वीडियो के साथ एक लंबा बयान भी लिखा, जिसमें उन्होंने कहा, "जब कोई सबूत नहीं, तो अमानवीय यातना क्यों?"। दूसरी ओर, पुनीत गहलोत ने पत्रकारों को बतायाः "हमें अब तक कोई आधिकारिक मेडिकल रिपोर्ट नहीं मिली, पर जांच चल रही है। अगर कोई गलत कार्रवाई हुई है तो हम कड़ी कार्रवाई करेंगे।"

स्थानीय मीडिया और सामाजिक नेटवर्क पर इस मुद्दे पर तीखा बहस चल रहा है। कई सामाजिक कार्यकर्ता मुस्कुराते हुए कहते हैं कि यह केस दलितों के खिलाफ चलती जमीनी हिंसा का एक नया चेहरा है। वहीं पुलिस संघ के प्रतिनिधि ने कहा, "हमें अपने स्टाफ की सुरक्षा भी जरूरी है, और कोई भी आरोप जांच के बिना नहीं किया जा सकता।"

जांच और कानूनी प्रक्रिया: स्वतंत्र जांच का आदेश

मध्य प्रदेश पुलिस ने स्वतंत्र जांच की घोषणा की, जिसमें बाहरी विशेषज्ञों को शामिल किया जाएगा। इस जांच को "किसी भी पक्षपात से मुक्त" कहा गया है और यह कोर्ट‑ऑर्डर के तहत संचालित होगी। आगामी हफ्तों में एक अनुशासनात्मक पेटीशन भी दायर करने की संभावना है, जिसमें जमानत के बाद भी आरोपियों के विरुद्ध सत्रह नियत कार्रवाई की मांग की गई है।

यदि जांच से यह सिद्ध होता है कि पुलिस ने अत्यधिक शक्ति का दुरुपयोग किया, तो संबंधित अधिकारी को निलंबित किया जा सकता है, साथ ही उन्हें राजीव सिंह (स्पेशल कोर्ट) में पेश किया जा सकता है। इस तरह के मामलों में अक्सर भारतीय सशस्त्र बलों के लिए सत्रह अलग‑अलग जेल सजाएँ तय की जाती हैं, लेकिन राजनीतिक दबाव के कारण प्रक्रिया लंबी हो सकती है।

वृहत्तर प्रभाव: सामाजिक और राजनीतिक परिणाम

वृहत्तर प्रभाव: सामाजिक और राजनीतिक परिणाम

यह घटना सिर्फ एक स्थानीय मुद्दा नहीं है; यह व्यापक सामाजिक तनाव का प्रतिबिंब है। दलित समुदाय ने पिछले कुछ सालों में कई समान या अधिक गंभीर केसों को लेकर आवाज़ उठाई है – जैसे 2022 का "भिलाई मूर्ति केस" और 2023 का "बोंबाई पुलिस दमन"। इस बार अरुण यादव जैसी राष्ट्रीय राजनीतिज्ञ की भागीदारी ने मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर ले जा दिया।

विशेषज्ञों का कहना है कि यदि इस तरह की उच्च-प्रोफ़ाइल जांचें सच्चे परिणाम देती हैं, तो यह भविष्य में पुलिस-समुदाय संबंधों को सुधारने में मदद कर सकती है। वहीं यदि जांच में विफलता रही, तो यह सामाजिक असंतोष को और भड़का सकता है, जिससे भविष्य में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हो सकते हैं।

भविष्य की राह: क्या निलंबन और न्याय संभव है?

अभी के लिये सबसे बड़ा सवाल है – क्या डीजीपी वास्तव में दोषी पुलिसकर्मियों को तुरंत निलंबित करेंगे? कई कानूनी विशेषज्ञ बताते हैं कि निलंबन का आदेश केवल तब ही प्रभावी होता है जब प्रॉफ़िटिंग रिपोर्ट में स्पष्ट तौर पर अत्यधिक मारपीट साबित हो। अतः, इस केस की आंतरिक रिपोर्ट और फोरेंसिक मेडिकल परिणाम decisive होंगे।

जैसे ही जांच के प्रारम्भिक निष्कर्ष सामने आएंगे, राष्ट्रीय मीडिया इस पर नजर रखेगा। यदि न्याय सिद्ध होता है, तो यह दलित अधिकारों की लड़ाई में एक महत्वपूर्ण जीत होगी; अन्यथा, यह एक और अनसुलझा केस बन कर रह जाएगा, जिससे समुदाय में भरोसा कम होगा।

मुख्य तथ्य

  • घटना: 6 अगस्त 2024 – देवास में धार्मिक मूर्तियों की तोड़फोड़ पर गिरफ्तारी
  • पीड़ित: रवि अजमेरी (21), रितेश अजमेरी (23), रितेश सीनम (23)
  • मुख्य आरोप: थर्ड‑डिग्री टॉर्चर, नाखून तोड़ना, पीड़ितों पर शारीरिक चोटें
  • प्रतिक्रिया: कांग्रेस नेताओं ने डीजीपी को निलंबन और उच्च‑स्तरीय जांच की माँग की
  • पुलिस का बयान: गिरफ्तारी सीसीटीवी सबूत पर आधारित, स्वतंत्र जांच का आदेश दिया गया

Frequently Asked Questions

क्या इस मामले में पुलिसकर्मियों को निलंबित किया गया है?

अभी तक कोई आधिकारिक निलंबन घोषणा नहीं हुई है, लेकिन कांग्रेस नेता अरुण यादव ने डीजीपी से तत्काल निलंबन की मांग की है। स्वतंत्र जांच के बाद ही इस पर अंतिम निर्णय लिया जाएगा।

हिरासत में हुई alleged मारपीट के प्रमाण क्या हैं?

पीड़ितों ने अपने हाथ‑पैर पर बंधी पट्टियों, टूटे नाखून और कई गहरी चोटों की तस्वीरें सोशल मीडिया पर प्रकाशित की हैं। इन वीडियो को कांग्रेस नेता अरुण यादव ने सार्वजनिक किया, जबकि पुलिस ने अभी तक मेडिकल रिपोर्ट जारी नहीं की है।

स्वतंत्र जांच किसका आदेश दे रहा है?

मध्य प्रदेश सरकार ने मध्य प्रदेश पुलिस को स्वतंत्र जांच का आदेश दिया है। इस जांच में बाहरी forensic experts और मानवाधिकार आवेदकों को शामिल किया जाएगा।

क्या इस घटना का कोई पिछला उदाहरण है?

हां, 2022 में भिलाई में भी ध्वांसे की गई समान घटना थी जहाँ दलित युवकों को पुलिस हिरासत में अत्यधिक मारपीट के आरोप लगे थे। उस मामले में भी राष्ट्रीय स्तर पर आंदोलन हुआ था, लेकिन अंतिम न्याय निष्कर्ष अस्पष्ट रहा।

इस केस से दलित समुदाय पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

यदि जांच कठोर कार्रवाई करती है, तो यह दलित अधिकार संगठनों के लिए जीत होगी और पुलिस-समुदाय भरोसे को सुधार सकती है। लेकिन अगर निष्कर्ष अनुकूल नहीं निकलते, तो सामाजिक असंतोष बढ़ेगा और भविष्य में बड़े विरोध प्रदर्शन हो सकते हैं।

11 टिप्पणि

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    Himanshu Sanduja

    सितंबर 30, 2025 AT 23:53

    बहुत दुःखद घटना है, पुलिस को अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए। ऐसे मामलों में जनता का भरोसा टूटता है। सरकार को त्वरित और निष्पक्ष जांच करवानी चाहिए।

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    Kiran Singh

    अक्तूबर 1, 2025 AT 01:01

    समर्थन के साथ साथ बदलाव की ज़रूरत है 🙏🏽💪🏽

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    Shubham Abhang

    अक्तूबर 1, 2025 AT 02:30

    यह मामला सिर्फ स्थानीय नहीं है, यह राष्ट्रीय स्तर पर गूँजता है।
    पुलिस की बर्बरता ने कई सामाजिक वर्गों को झकझोर दिया है।
    वीडियो में दिखी हुई पीड़ितों की हालत द्रवित करने वाली है।
    साक्ष्य के बिना कोई न्याय नहीं हो सकता, लेकिन यह स्पष्ट है कि अत्यधिक बल प्रयोग हुआ।
    पिछले कई वर्षों में इसी प्रकार की घटनाएँ घटित हुई हैं, फिर भी जवाबदेही नहीं मिली।
    जांच में लापरवाही दिखना एक बड़ा संकेत है।
    जब तक उच्च अधिकारियों की सख्त कार्रवाई नहीं होगी, जनता का भरोसा नहीं बन पाएगा।
    भ्रष्टाचार की जड़ें गहरी होंगी, अगर इस पर कार्रवाई नहीं हुई तो प्रणाली पूरी तरह से बिगड़ जाएगी।
    कांग्रेस नेता अरुण यादव की मांग को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
    ऐसे मामलों में स्वतंत्र जांच का आदेश एक सही कदम है, लेकिन इसकी निष्पादनीयता देखनी होगी।
    मीडिया को भी इस मुद्दे को उभारा रखना चाहिए, अन्यथा यह फिर से दबा दिया जाएगा।
    सामाजिक संगठनों को इकठ्ठा होकर एकजुट होना चाहिए।
    संविधान में लिखी गई समानता के सिद्धांतों का उल्लंघन हो रहा है।
    अगर न्याय नहीं मिला तो यह एक और उत्पीड़न की लहर बन जाएगा।
    समाज को इस दुराचार को रोकने के लिए सक्रिय कदम उठाने चाहिए।
    आखिरकार, सत्य की शक्ति ही इस दंगाई को समाप्त करेगी।

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    Trupti Jain

    अक्तूबर 1, 2025 AT 03:53

    साक्ष्य की कमी में मात्र आरोप नहीं लग सकेंगे, प्रशासकीय प्रक्रिया का पालन आवश्यक है।

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    deepika balodi

    अक्तूबर 1, 2025 AT 05:16

    ऐसी घटनाएँ सामाजिक विवेचना को मजबूर करती हैं।

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    Priya Patil

    अक्तूबर 1, 2025 AT 06:40

    इसे देख कर गुस्सा आता है।

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    Rashi Jaiswal

    अक्तूबर 1, 2025 AT 08:03

    भाई, ऐसे ही बातों को अनदेखा नहीं करना चाहिए, हमें आवाज़ उठानी होगी!!

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    Maneesh Rajput Thakur

    अक्तूबर 1, 2025 AT 09:26

    यह सिर्फ पुलिस की बुराई नहीं, यह प्रणालीगत असमानता का प्रतीक है, कई स्तर पर दमन निहित है, मीडिया को सच्चाई दिखानी चाहिए, जनता को सतर्क रहना चाहिए, दंडित नहीं होना चाहिए, सबूतों को सही ढंग से पेश किया जाएगा, नहीं तो क़ानून का सम्मान बर्बाद होगा, हमें नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए, यह मामला राष्ट्रीय स्तर पर उठाया जाना चाहिए, प्रशासनिक जवाबदेही जरूरी है, न्याय की माँग हमेशा सच्ची रहेगी, फिर चाहे कोई भी शक्ति हो, अंत में सत्य ही जीतता है।

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    ONE AGRI

    अक्तूबर 1, 2025 AT 10:50

    भाई, इस तरह की बर्ताव को कोई भी राष्ट्रीय भावना नहीं खारेज कर सकती।
    हमें हमारी भूमि, हमारी संस्कृति की रक्षा करनी है, और ऐसे बर्ताव को सख्त सजा मिलनी चाहिए।
    अगर सरकार इसपर सख्त कदम नहीं उठाती तो इसका असर पूरे देश में फैल जाएगा।
    हमारे लोग हमेशा से दूसरों की रक्षा में अग्रसर रहे हैं, अब हमें अपने अधिकारों के लिए आवाज़ उठानी है।
    इस लिये नागरिकों को मिलकर आंदोलन करना चाहिए, न कि सिर्फ कंप्यूटर स्क्रीन के आगे बैठना।
    जब तक न्याय नहीं मिलता, तब तक हम शांति से नहीं बैठ सकते।

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    Rashi Nirmaan

    अक्तूबर 1, 2025 AT 12:13

    उपरोक्त बयानों को उचित वैधानिक प्रक्रम के अंतर्गत परीक्षण किया जाना चाहिए, अतः शीघ्र कार्रवाई अनिवार्य है।

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    Ashutosh Kumar Gupta

    अक्तूबर 1, 2025 AT 13:36

    ऐसी अत्याचारी नीतियों को स्वीकार नहीं किया जा सकता, हमें मुक्त विचार और न्याय की मांग करनी चाहिए।

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