Ladki Bahin Yojana: मार्च में 2.52 करोड़ महिलाओं के खाते में ₹3,000, बजट कटौती के बीच जारी राहत

मार्च में दो किस्तें एक साथ, 2.52 करोड़ महिलाओं को ₹3,000
मार्च के पहले हफ्ते में ही 2.52 करोड़ महिलाओं के खाते में ₹3,000 आ गए—यह फरवरी और मार्च की संयुक्त 8वीं और 9वीं किस्त थी। महिला एवं बाल विकास मंत्री अदिति तटकरे ने बताया कि 7 मार्च 2025 तक लंबित भुगतान साफ कर दिए गए। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस से ठीक पहले आई यह राशि उन परिवारों के लिए राहत बनी, जो जनवरी के बाद देरी को लेकर चिंतित थे।
जुलाई 2024 से शुरू हुई Ladki Bahin Yojana का मकसद साफ है—21 से 65 वर्ष की पात्र महिलाओं को हर महीने ₹1,500 की सीधी आर्थिक मदद, ताकि खर्चों में सहारा मिले, स्वास्थ्य और पोषण पर खर्च बढ़े, और घर के फैसलों में उनकी आवाज मजबूत हो। पात्रता में विवाहित, विधवा, तलाकशुदा, परित्यक्ता, निराश्रित और प्रत्येक परिवार में एक अविवाहित महिला शामिल है। शर्तें भी स्पष्ट हैं—महाराष्ट्र में निवास, परिवार की सालाना आय ₹2.5 लाख तक, और आधार से लिंक बैंक खाता। राज्यभर में लगभग 2.53 करोड़ महिलाएं इस दायरे में आती हैं और शुरुआत से अब तक ₹33,232 करोड़ का वितरण हो चुका है।
योजना का भुगतान Direct Benefit Transfer (DBT) से होता है। यानी रकम सीधे बैंक खाते में—मध्यस्थ का झंझट नहीं, ट्रैकिंग आसान और पारदर्शिता बेहतर। जुलाई 2025 की किस्त भी 8 अगस्त को भेजी गई, जिसे रक्षाबंधन से जोड़ा गया। यह बताता है कि सरकार समयबद्धता और प्रतीकात्मक तिथियों—दोनों पर ध्यान रख रही है।
बजट में कटौती, नियम-कायदे और आगे की रणनीति
यहां बड़ा सवाल बजट का है। वित्त मंत्री अजित पवार ने 2025-26 में इस योजना का आवंटन ₹46,000 करोड़ से घटाकर ₹36,000 करोड़ कर दिया। सीधे असर को समझिए—2.53 करोड़ लाभार्थी×₹1,500 हर महीने का मतलब करीब ₹3,795 करोड़ मासिक बहिर्वाह और पूरे साल का खर्च लगभग ₹45,500 करोड़। यानी मौजूदा आवंटन वार्षिक आवश्यकता से कम है। संकेत साफ हैं: सरकार लाभार्थियों की सूची को और सटीक कर रही है (डुप्लीकेट हटाना, अनुपात्र बाहर करना), या आंशिक रूप से तिमाही/मासिक कैश-फ्लो मैनेजमेंट पर भरोसा कर रही है। चुनाव से पहले ₹1,500 को बढ़ाकर ₹2,100 करने का जो वादा था, वह बजट में नहीं दिखा—जाहिर है, फिलहाल प्राथमिकता समय पर भुगतान रखना है, दर बढ़ाना नहीं।
इस बीच, लाभार्थियों ने जो सबसे ज्यादा दिक्कतें देखीं, वे तकनीकी थीं—आधार-बैंक खाते की मैपिंग में त्रुटि, नाम/जन्मतिथि का mismatch, निष्क्रिय खाते में क्रेडिट की कोशिश, या आय/वैवाहिक स्थिति के दस्तावेज अधूरे। विभाग का दावा है कि मार्च तक इनकी अच्छी-खासी सफाई हुई, तभी संयुक्त किस्तें समय पर पहुंचीं।
कौन पात्र है? एक नजर में:
- महाराष्ट्र में निवास और परिवार की वार्षिक आय ₹2.5 लाख तक।
- उम्र 21–65 वर्ष।
- विवाहित, विधवा, तलाकशुदा, परित्यक्ता, निराश्रित—या परिवार की एक अविवाहित महिला।
- आधार से लिंक, सक्रिय बैंक खाता; खाते में NPCI मैपिंग/सीडिंग पूरी।
नामांकन कैसे हुआ/होता है? जिले और नगर निकायों ने शिविर और ऑनलाइन दोनों रास्ते खोले। आमतौर पर मांगे गए दस्तावेज ये रहे:
- आधार और मोबाइल नंबर (eKYC के लिए)।
- उम्र का प्रमाण (जैसे जन्मतिथि वाला आधार/स्कूल प्रमाणपत्र)।
- निवास और आय प्रमाणपत्र।
- वैवाहिक स्थिति से जुड़े दस्तावेज (जहां लागू)।
- बैंक पासबुक/खाता विवरण—आधार सीडिंग अनिवार्य।
अगर भुगतान अटका है तो सबसे पहले अपने बैंक से आधार-खाता सीडिंग और NPCI मैपिंग स्टेटस की पुष्टि करें। नाम/जन्मतिथि में अंतर है तो आधार और बैंक रिकॉर्ड एक जैसे कराएं। खाता निष्क्रिय है तो उसे सक्रिय कराएं और KYC अपडेट रखें। विभागीय रिकॉर्ड में परिवार की “एक अविवाहित” शर्त पर डुप्लीकेट दिखे तो स्थानीय कार्यालय/कैंप में सुधार आवेदन दें।
किस्तें कब आती हैं? अनुभव यही कहता है कि लक्ष्य हर महीने की शुरुआत में भुगतान का रहता है। कभी-कभी सत्यापन या तकनीकी वजहों से संयुक्त किस्तें भेजी जाती हैं—मार्च 2025 इसका ताजा उदाहरण है। ट्रांजैक्शन अलर्ट के लिए SMS/मोबाइल नंबर अपडेट रखें।
जमीन पर असर? यह ₹1,500 घर के स्थायी खर्चों—राशन, बच्चों की फीस, क्लिनिक बिल—में सीधे लगता है। ग्रामीण इलाकों में महिलाएं इसे बकाया कर्ज की किस्त या दूध-रसोई गैस जैसे खर्चों में लगा रही हैं। शहरी परिवारों में किराया और दवाइयों पर राहत दिखती है। राशि बहुत बड़ी नहीं, पर हर महीने की तय, भरोसेमंद आमदनी का रोल मजबूत है—इसी के लिए यह योजना बनाई गई थी।
पारदर्शिता और जवाबदेही भी खास है। DBT से बिचौलिया कम हुआ है, भुगतान का डिजिटल ट्रेल बनता है। विभाग समय-समय पर डेटा क्लीनअप, सामाजिक ऑडिट और ग्रिवांस निपटान चलाता है—ताकि असली हकदार छूटें नहीं और फर्जी लाभ बंद हो।
वित्तीय तस्वीर चुनौती भरी है। मौजूदा लाभार्थी आधार और ₹1,500 की दर को देखते हुए सालाना ज़रूरत ₹45–46 हजार करोड़ के आसपास बैठती है। आवंटन ₹36 हजार करोड़ है। या तो लाभार्थियों की संख्या में वास्तविक-समय सुधार से खर्च घटेगा, या राज्य को मध्यवर्षीय संशोधन/अतिरिक्त मांग से खाई भरनी होगी। दर बढ़ाकर ₹2,100 करने का वादा लागू हुआ तो यह अंतर और बढ़ेगा—फिलहाल इसके संकेत नहीं हैं।
फिर भी, जुलाई 2025 की किस्त रक्षाबंधन से पहले भेजना और मार्च में संयुक्त भुगतान निपटाना बताता है कि प्रशासन वितरण शेड्यूल को पटरी पर रखने में लगा है। आगे की कुंजी यही रहेगी—साफ़ लाभार्थी सूची, बिना अड़चन DBT, और स्थिर बजट सपोर्ट। महिलाओं के हाथ में समय पर नकद पहुंचे, तो योजना का असली मकसद—आर्थिक आत्मनिर्भरता—ज्यादा दूर नहीं।