फतेहपुर पत्रकार दिलीप सैनी की हत्या: पत्नी मनोरमा राजपूत की दर्दनाक आपबीती

फतेहपुर पत्रकार दिलीप सैनी की हत्या: पत्नी मनोरमा राजपूत की दर्दनाक आपबीती
13 जून 2025 0 टिप्पणि अनुराधा मेहता

फतेहपुर पत्रकार हत्या: एक परिवार की टूटी दुनिया

फतेहपुर जिले की उस काली रात को मीडिया से लेकर आम लोगों तक हर कोई सन्न रह गया। 38 वर्षीय दिलीप सैनी—जिन्हें निडर पत्रकार और परिवार के मजबूत सहारे के रूप में जाना जाता था—को संपत्ति के विवाद में चाकू से मार डाला गया। यह घटना सिर्फ़ एक खबर या अपराध नहीं, बल्कि उस परिवार की कहानी है जिसने एक झटके में सब कुछ खो दिया।

मनोरमा राजपूत, दिलीप की पत्नी, घटनाओं के दिन से ही ग़म और झकझोर देने वाले सवालों में घिरी हैं। अब उन्होंने पहली बार परिवार के दर्द और न्याय की चाहत को शब्दों में बयां किया। मनोरमा ने बताया—दिलीप उस रात बिना किसी डर के, केवल सच के लिए लड़ रहे थे। हर कोई जानता था कि दिलीप ने काफी दिनों से जमीन खरीद की गड़बड़ी को उजागर किया था। परिवार में बार-बार कहा जाता था कि वे किसी से डरते नहीं हैं, उन्हें बस सच्चाई से फर्क पड़ता है।

मनोरमा के चेहरे पर डर, गुस्सा और मजबूरी साफ दिखती है। “जिसने मेरे बच्चों के सिर से पिता का साया छीन लिया, उनके लिए कोई सज़ा काफी नहीं होगी। लेकिन अब मेरी लड़ाई केवल दिलीप के हत्यारों को सज़ा दिलाने की नहीं, बल्कि उनके द्वारा उजागर की गई गड़बड़ियों को सार्वजनिक करने की भी है। दिलीप ने कभी समझौता नहीं किया, न सिस्टम से डरे, न धमकियों से,” मनोरमा का कहना है।

मनोरमा राजपूत मानसिक रूप से बुरी तरह टूट गई हैं। छोटे बच्चों और परिवार की जिम्मेदारी अब पूरी तरह उनकी है। वे कहती हैं, “दिलीप के साथ मेरी ज़िंदगी का सफर जहां अचानक थम गया, वहीं उनके अधूरे काम को भी मुझे आगे ले जाना होगा। यह लड़ाई मेरी निजी भी है और समाज के लिए भी।”

हत्या के पीछे की साजिश और जांच की पोल

हत्या के पीछे की साजिश और जांच की पोल

दिलीप की हत्या कोई आसान आपसी विवाद नहीं थी। 30 अक्टूबर रात शहर के बीचोबीच हुई इस वारदात का सीधा लिंक एक बड़े जमीन सौदे और स्थानीय नर्सिंग होम संचालक प्रकाश सिंह से जुड़ता है। इस झगड़े में दिलीप का दोस्त और भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा का नेता शाहिद खान भी घायल हुआ। मामले में शुरुआत से ही पुलिस की भूमिका पर सवाल उठने लगे। क्या पहले से पुलिस को दिलीप पर खतरे की सूचना थी या अनदेखी हुई?

मनोरमा का दर्द यहाँ भी झलकता है—“अगर उस दिन दिलीप को पुलिस सुरक्षा मिली होती, शायद आज वे हमारे साथ होते।” जांच में पता चला कि हमलावरों में दो मुख्य आरोपी अन्नु और आलोक तिवारी को पुलिस ने मुठभेड़ में दबोचा, जबकि एक राजस्व कर्मचारी समेत नौ लोगों को गिरफ्तार किया। सवाल यह भी है कि संपत्ति विवाद में क्षेत्र के सरकारी अफसर तक संलिप्त मिले।

हत्या के बाद पूरे फतेहपुर में पत्रकार सुरक्षा को लेकर बहस तेज हो गई है। विभिन्न मीडिया संघटन बार-बार प्रशासन से न्याय की मांग कर रहे हैं। मनोरमा को इस बात की तसल्ली नहीं है कि आरोपियों की गिरफ्तारी से सबकुछ ठीक हो जाएगा, बल्कि वे अपने पति की आवाज को दबने नहीं देना चाहतीं।

  • मामले में सारे आरोपी सलाखों के पीछे हैं, पर न्याय की प्रक्रिया लंबी है।
  • दिलीप के अधूरे सच को पूरा करना अब परिवार की जिम्मेदारी है।
  • स्थानीय स्तर पर पत्रकारों में डर और आक्रोश दोनों है।

फिलहाल फतेहपुर के हर चौक-चौराहे पर बस एक ही चर्चा है—क्या दिलीप को न्याय मिलेगा? क्या परिवार को इतनी आसानी से भुला दिया जाएगा? या मनोरमा और उनके बच्चों की लड़ाई आगे समाज के लिए बदलाव की मिसाल बनेगी?