पोप फ्रांसिस : सादगी, करुणा और बदलाव की मिसाल

पोप फ्रांसिस : एक साधारण जीवन से जगतपिता तक
पोप फ्रांसिस के जीवन का सबसे बड़ा आकर्षण उनकी विलक्षण सादगी थी। पोप बनने के बाद भी वे अक्सर पब्लिक ट्रांसपोर्ट से सफर करते रहे, अपने लिए खाना खुद बनाते, और चर्च के लिए मिलने वाली भव्य सुविधाओं से दूर रहते। साल 2001 में जब उन्हें पोप जॉन पॉल द्वितीय ने कार्डिनल बनाया था, तब भी उनका रवैया जर्सी पर सफेद और घनी ब्रांडिंग से हटकर जमीन से जुड़ा नजर आया। उनकी यह असाधारण सादगी और व्यावहारिकता उन्हें आम लोगों के और करीब ले गई।
बेनिडिक्ट सोलहवें के अत्यंत शास्त्रीय और अकादमिक दौर के बाद, पोप फ्रांसिस ने चर्च की छवि को बिल्कुल नया मोड़ दिया। उन्होंने चर्च को 'फील्ड हॉस्पिटल' कहकर इसकी असली जरूरतमंदों तक पहुंच पर फोकस किया। वे सिर्फ बयान देने वाले पोप नहीं थे, बल्कि गरीब, प्रवासी और धार्मिक अल्पसंख्यकों के बीच उठकर खड़े होने वाले एक असली रहनुमा भी थे। अर्जेंटीना के पड़ोस में बड़े होने के अनुभवों ने उन्हें दलित और पिछड़ों के दर्द को करीब से देखने का नजरिया दिया।

सुधार, साहस और चर्च की नई दिशा
उनकी सबसे चर्चित और विवादित बातों में से एक थी 2013 में LGBTQ+ समुदाय पर दिया गया बयान – “मैं कौन हूं जज करने वाला?” इस एक पंक्ति ने दुनियाभर में रूढ़िवादी धारणाओं और सशक्ति की बहस छेड़ दी। उन्होंने कई बार चर्च के भीतर बंदिशों को तोड़ने की कोशिश की। वे अमीर-गरीब की खाई, पूंजीवाद की अति और प्रवासियों के खिलाफ नफरत को लेकर बहुत मुखर रहे।
महिलाओं की भूमिका पर उनका रवैया भी असाधारण रहा। उन्होंने वैटिकन की उच्च बैठकों में महिलाओं को वोट देने का अधिकार दिलाया। परंपरा तोड़ते हुए, वे उन बहुत कम लोगों में शामिल रहे जिनकी पहल से महिला नेतृत्व चर्च के शक्ति-वर्ग तक पहुंचा।
उनकी जिंदगी के कई प्रेरक किस्से सामने आए। उन्होंने कैदियों के पैर धोए, जिनमें मुस्लिम भी शामिल थे। दक्षिण सूडान के नेताओं के सामने घुटनों के बल बैठकर शांति की भीख मांगी—ऐसा साहस कम ही पोप दिखाते हैं।
पोप फ्रांसिस न केवल चर्च के पहले लैटिन अमेरिकी और गैर-यूरोपीय पोप बने, बल्कि उन्होंने धार्मिक नेतृत्व की सीमाएं ही बदल दीं। दुनिया भर में कैथोलिक समुदायों में बढ़ते रूढ़िवाद और प्रगतिशील सोच के बीच संतुलन बनाना किसी भी बड़े धार्मिक नेता के लिए शायद पहली बार इतना चुनौतीपूर्ण हुआ। अपनी आखिरी ईस्टर प्रार्थना के साथ ही उन्होंने चर्च को बदलाव, प्रेम और दया की विरासत सौंप दी।