पुणे के बर्गर किंग ने जीता कानूनी संघर्ष, बरकरार रखा ट्रेडमार्क

पुणे के बर्गर किंग ने जीता कानूनी संघर्ष, बरकरार रखा ट्रेडमार्क
19 अगस्त 2024 10 टिप्पणि Kaushal Badgujar

पुणे के बर्गर किंग ने जीता कानूनी संघर्ष

पुणे की प्रसिद्ध बर्गर किंग, जो 1992 से शहर में स्वादिष्ट बर्गर परोस रही है, ने एक बड़ी कानूनी जीत हासिल की है। मामले की शुरुआत 2011 में हुई थी जब अमेरिकी बर्गर किंग कॉर्पोरेशन ने ट्रेडमार्क उल्लंघन का दावा करते हुए रेस्तरां मालिक अनाहिता ईरानी और शापूर ईरानी पर मुकदमा दायर किया था। अमेरिकी कंपनी ने आरोप लगाया था कि पुणे के रेस्तरां द्वारा 'बर्गर किंग' नाम का उपयोग अवैध है और यह उनके ब्रांड को नुकसान पहुँचा रहा है।

मामले का इतिहास और दावे

अमेरिकी बर्गर किंग कॉर्पोरेशन, जो 1954 में स्थापित हुई थी और वर्तमान में 122 देशों में अपनी उपस्थिति दर्ज कर चुकी है, ने इस मामले में यह दावा किया था कि पुणे का बर्गर किंग उनके ट्रेडमार्क का उल्लंघन कर रहा है। उन्होंने भारतीय रेस्तरां से न सिर्फ नाम बदलने की अपील की बल्कि ₹20 लाख रुपये के हर्जाने की भी मांग की थी। अदालत में प्रस्तुत दस्तावेजों के अनुसार, अमेरिकी कंपनी ने 2011 में शिकायत दर्ज करवाई थी।

इसके जवाब में, अनाहिता और शापूर ईरानी ने दावा किया कि उनका रेस्तरां 1992 से अधिकृत रूप से इस नाम से संचालित हो रहा है और इसका कोई वैधानिक उल्लंघन नहीं है। साथ ही, उन्होंने अदालत से यह भी दावा किया कि कानूनी संघर्ष के कारण उनके व्यवसाय को क्षति पहुँची है।

अदालत का निर्णय

इस मामले की सुनवाई के बाद, पुणे जिला जज सुनील वेदपथक ने अगस्त 16, 2024 को फैसला सुनाते हुए अमेरिकी बर्गर किंग कॉर्पोरेशन की अपील खारिज कर दी। अदालत ने पाया कि स्थानीय रेस्तरां ने कोई भी ट्रेडमार्क उल्लंघन नहीं किया है और ना ही ग्राहकों के बीच कोई भ्रम उत्पन्न हुआ है। इसके अलावा, अमेरिकी कंपनी की ओर से प्रस्तुत हर्जाने और स्थायी निषेधाज्ञा की मांग को भी अदालत ने अस्वीकार कर दिया।

मामले की सुनवाई के दौरान यह स्पष्ट हुआ कि अमेरिकी कंपनी ने अपने दावों का कोई ठोस सबूत प्रस्तुत नहीं किया। अदालत का मानना था कि स्थानीय रेस्तरां का नाम पहले से ही वैध रूप से पंजीकृत है और इसका उपयोग निरंतर हो रहा है, जो वैश्विक कंपनी द्वारा प्रस्तुत किए गए सभी आरोपों को खारिज करता है।

स्थानीय बर्गर किंग की प्रतिक्रिया

न्यायालय के फैसले के समय, मालिक अनाहिता ईरानी ने एक मीडिया बयान में कहा कि वो इस निष्कर्ष से बहुत प्रसन्न हैं और यह न्यायपालिका की कार्यप्रणाली में उनके विश्वास को मजबूत करता है। उन्होंने अपने वफादार ग्राहकों को भी धन्यवाद दिया जिन्होंने इस कठिन समय में उनका समर्थन किया।

न्यायिक निर्णय का महत्व

यह निर्णय न केवल पुणे के बर्गर किंग के लिए बल्कि अन्य छोटे और मध्यम व्यवसायों के लिए भी महत्वपूर्ण है जो अंतर्राष्ट्रीय ब्रांडों के साथ ट्रेडमार्क विवादों में फंसे हैं। यह स्पष्ट करता है कि भारतीय न्यायपालिका छोटे व्यवसायों के अधिकारों की रक्षा करने में सक्षम है और किसी भी अवैध दबाव से बाहर नहीं आएगी।

इस फैसले से स्थानीय व्यवसायों को यह भी प्रेरणा मिलेगी कि वे अपनी पहचान और अधिकारों के लिए लड़ सकते हैं। यह उदाहरण छोटे उद्यमियों के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत करता है कि वे किसी भी प्रतिकूल परिस्थितियों में अपने व्यवसाय को सफलतापूर्वक संचालित कर सकते हैं, बशर्ते उनके पास कानूनी आधार हो।

10 टिप्पणि

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    Shreyas Wagh

    अगस्त 19, 2024 AT 07:34
    ये बर्गर किंग वाले तो पुणे के दिल के नाम हैं। अमेरिका का ब्रांड बड़ा है, पर यहाँ का नाम तो 30 साल पहले से लिखा हुआ है। ट्रेडमार्क का मतलब ये नहीं कि जो कुछ भी दुनिया में पहले था, उसे खरीद लो।
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    Aniket Jadhav

    अगस्त 20, 2024 AT 22:47
    bhaiya ye toh mast baat hui... pune wale burger king ko toh hum sab jante hai, kya pata america wale kahan se aaye? 😅
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    Anoop Joseph

    अगस्त 22, 2024 AT 19:58
    अच्छा हुआ कि अदालत ने सही फैसला दिया। छोटे व्यापारी भी अपना नाम बचा सकते हैं।
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    Kajal Mathur

    अगस्त 23, 2024 AT 13:22
    यह निर्णय निश्चित रूप से न्याय की दिशा में एक कदम है, हालाँकि इसका कानूनी आधार थोड़ा अस्पष्ट लगता है। ट्रेडमार्क के संदर्भ में पहले उपयोग का सिद्धांत अंतर्राष्ट्रीय व्यापार नियमों के साथ संगत नहीं है।
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    rudraksh vashist

    अगस्त 25, 2024 AT 00:16
    भाई ये तो सच में दिल जीत गया। जब तक ये बर्गर खाने का मजा है, नाम क्या है? अमेरिका वाले भी अपने बर्गर बेच रहे हैं, हम अपने बर्गर खा रहे हैं। दोनों अलग-अलग दुनिया हैं।
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    Archana Dhyani

    अगस्त 25, 2024 AT 16:25
    अरे ये सब तो बस एक बड़े कॉर्पोरेट जीव का आत्म-अहंकार है। वो अपने ब्रांड को दुनिया भर में घुसाना चाहते हैं, जबकि यहाँ के लोगों के दिलों में ये बर्गर किंग तो पहले से ही रह गया है। ये निर्णय तो बस एक आवाज़ है जो कहती है - हम अपने जीवन को अपने तरीके से जीते हैं। ये बर्गर किंग ने जो किया, वो नहीं तो ये देश की आत्मा है।
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    Guru Singh

    अगस्त 27, 2024 AT 11:35
    इस मामले में ट्रेडमार्क के अधिकारों का अंतर्राष्ट्रीय और स्थानीय पहलू दोनों हैं। भारत में ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 की धारा 29 के अनुसार, यदि कोई व्यापारी पहले से ही नाम का उपयोग कर रहा है और उसका ब्रांड लोगों में पहचाना जाता है, तो उसे 'पहले उपयोग' का अधिकार मिलता है। यही यहाँ लागू हुआ।
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    Sahaj Meet

    अगस्त 28, 2024 AT 12:04
    ये बर्गर किंग तो हमारे गली के बच्चों की यादों में है। जब तक ये बर्गर अच्छा है, नाम का क्या? अमेरिका का ब्रांड तो बड़ा है, पर यहाँ का दिल छोटा नहीं है। इस फैसले से लाखों छोटे व्यापारी बहादुर हो गए।
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    Madhav Garg

    अगस्त 30, 2024 AT 09:31
    यह फैसला न्याय की जीत है, न कि किसी ब्रांड की। ट्रेडमार्क एक व्यावहारिक सुरक्षा है, न कि एक वैश्विक अधिकार। यहाँ के रेस्तरां ने 32 साल तक लगातार नाम का उपयोग किया, और ग्राहकों के बीच इसकी पहचान बन गई। यह एक ऐसा अधिकार है जिसे कोई नहीं छीन सकता।
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    Sumeer Sodhi

    अगस्त 31, 2024 AT 07:14
    इस फैसले को देखकर लगता है कि भारत में कानून का अर्थ बदल गया है। अगर कोई बड़ी कंपनी अपना ब्रांड दुनिया में बेच रही है, तो उसका अधिकार यहाँ भी लागू होना चाहिए। ये फैसला बस एक छोटे व्यापारी के लिए एक छूट है - लेकिन ये नियम बदल देगा। अब कोई भी छोटा व्यापारी बड़े ब्रांड का नाम चुरा सकता है, और अदालत उसे बचाएगी। ये न्याय नहीं, अनियमितता है।

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