‘द भूतनी’ में मौनी रॉय का 45 रातों का संघर्ष: पेड़ पर शूटिंग और डर-हंसी के बीच जंग

‘द भूतनी’ में मौनी रॉय का 45 रातों का संघर्ष: पेड़ पर शूटिंग और डर-हंसी के बीच जंग
2 मई 2025 13 टिप्पणि Kaushal Badgujar

मौनी रॉय के लिए 'द भूतनी' की रातें: 45 दिन, पेड़ और भूतिया कहानी

बॉलीवुड की ग्लैमरस एक्ट्रेस मौनी रॉय अक्सर अपने ग्लैम लुक्स और शार्प एक्टिंग के लिए जानी जाती हैं, लेकिन इस बार उन्होंने अपने नए रोल के साथ खुद के धैर्य और जुनून की हदें पार कर दीं। 'द भूतनी' की शूटिंग के दौरान मौनी को लगातार 45 रातें 10-11 घंटे तक कैमरे के सामने बितानी पड़ीं। सोचना भी मुश्किल है कि इतनी लंबी और थकाऊ रातों में जब बाकी दुनिया चैन की नींद सो रही थी, वह पेड़ की डालियों पर बैठकर अपने दिल दहला देने वाले सीन्स शूट कर रही थीं। यह फिल्म एक सामान्य मनोरंजक हॉरर नहीं, बल्कि हॉरर, कॉमेडी और साइंस-फिक्शन का मिक्स है, और ऐसे कठिन जॉनर को जीवंत करना आसान नहीं था।

मौनी ने खुद बताया कि उन्हें कई बार पेड़ पर घंटों लटककर अपना किरदार निभाना पड़ा, जिससे शरीर में झुनझुनी होने लगी थी। किसी दिन शूटिंग के दौरान कीड़े-मकौड़े परेशान कर देते थे, तो कभी शरीर में सिर्फ harness की वजह से दर्द हो जाता था। लेकिन मौनी इन चुनौतियों से डरी नहीं, बल्कि कहती हैं कि यही अनुभव उन्हें एक कलाकार के तौर पर नई ऊंचाइयों पर लेकर गया।

‘द भूतनी’ की कहानी: प्यार, डर और हंसी के अनोखे ताने-बाने में उलझी आत्माएं

‘द भूतनी’ की कहानी: प्यार, डर और हंसी के अनोखे ताने-बाने में उलझी आत्माएं

'द भूतनी' की कहानी उतनी ही असामान्य है जितना इसका नाम। कहानी पुराने कॉलेज कैंपस में बसे एक 'वर्जिन ट्री' के साथ शुरू होती है, जो एक शापित पेड़ है। छात्र इस पेड़ के पास जाकर सच्चे प्यार की दुआ मांगते हैं। यहीं से मौनी रॉय का किरदार 'मोहब्बत' कहानी में एंट्री लेता है। मोहब्बत कोई आम आत्मा नहीं, बल्कि सुपरपावर से लैस है—जो अतीत की पीढ़ियों की मजबूरी और दर्द लेकर चलती है। जब शान्तनु (सनी सिंह) अपनी मोहब्बत के लिए प्रार्थना करता है, तब मोहब्बत उसकी जिंदगी में दस्तक देती है। इसके बाद कहानी में डर, रोमांच और कॉमिक मस्ती का तड़का देखने को मिलता है।

इस फिल्म में संजय दत्त की धमाकेदार एंट्री भी है, जो 'बाबा' नाम के पारलौकिक एक्सपर्ट बने हैं। बाबा और मोहब्बत के बीच भिड़ंत में विज्ञान, भूत-प्रेत और सच्चा प्यार—तीनों की अलग-अलग दुनिया टकराती नज़र आती है। फिल्म में पल्क तिवारी, आसिफ खान और निकुंज लोटिया भी सपोर्टिंग रोल्स में अलग छाप छोड़ते हैं।

डायरेक्टर सिद्धांत सचदेव ने फिल्म को हॉरर, कॉमेडी और साइंस फिक्शन के दिलचस्प फॉर्मूले के साथ बनाया है, जिसमें मज़ेदार डायलॉग और रफ्तार से भरपूर सीन हैं। 1 मई, 2025 को आई यह मूवी एक ही समय में हंसी, डर और प्यार की फीलिंग देती है। ऐसी यूनिक कोशिशें बॉलीवुड में कम ही देखने को मिलती हैं। फिल्म के अतरंगी किरदार, चुंबकीय लोकेशन, और खासकर मौनी रॉय का स्ट्रॉन्ग गेटअप, सभी को फिल्म से जोड़कर रखते हैं।

शूटिंग की इन शानदार कहानियों के साथ मौनी रॉय का समर्पण इस बात को भी दिखाता है कि एक किरदार को पर्दे पर लाने के लिए कितनी मेहनत लगती है। 'द भूतनी' का अनुभव, फिल्मी पर्दे से बहुत आगे, कलाकारों की असली जिंदगी की मेहनत का भी रंग है।

13 टिप्पणि

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    Paresh Patel

    मई 3, 2025 AT 07:02
    मौनी रॉय ने जो किया वो बस एक्टिंग नहीं, एक युद्ध था। इतनी मेहनत के बाद फिल्म अच्छी निकली तो ये तो बस इंसानी जीत है।
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    Kiran M S

    मई 4, 2025 AT 06:23
    इस फिल्म को हॉरर-कॉमेडी-साइंस फिक्शन कहना बस एक आलसी टैग है। असल में ये एक नवीन भारतीय अल्टरनेटिव नैरेटिव है जो पारंपरिक रूपकों को तोड़ता है। मौनी का किरदार एक सामाजिक असंतोष का प्रतीक है।

    हम भूतों को डरते हैं, लेकिन असली भूत वो हैं जो हमारी इतिहास की नींव में दफन हैं। मोहब्बत वो आत्मा है जो हमारे अंदर की दर्द भरी यादों को बोलती है।
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    Raghunath Daphale

    मई 5, 2025 AT 13:26
    बाबा का किरदार तो बिल्कुल बेकार था 😒 और पेड़ पर लटकने वाली वाली दृश्य तो बस एक्स्ट्रा लंबा था। इतना ट्राउबल क्यों लेना था?
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    Renu Madasseri

    मई 6, 2025 AT 11:06
    मौनी रॉय के लिए ये रोल बस एक फिल्म नहीं, एक अध्यात्मिक यात्रा थी। उन्होंने अपने शरीर को त्याग दिया, और उस त्याग ने एक ऐसा किरदार जन्म दिया जो आज भी दर्शकों के दिल में बसता है।

    इस तरह के अनुभव बॉलीवुड को आगे बढ़ाते हैं। कलाकार वो नहीं जो ग्लैमरस दिखे, बल्कि वो जो अपने अंदर की आवाज़ को बाहर निकाल दे।
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    Noushad M.P

    मई 8, 2025 AT 01:55
    ye film dekhi kya?? sab kuch jhootha hai.. ped pe latakna koi naya baat nahi hai.. 90s me bhi aisa hota tha.. aur abhi bhi koi nahi dekhta
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    Sanjay Singhania

    मई 9, 2025 AT 20:17
    इस फिल्म में डायरेक्शन ने एक डेल्टा-एक्स सिस्टम का उपयोग किया है - जहां हॉरर एलिमेंट्स एक अनुक्रमिक अवचेतन डिस्कॉर्ड को ट्रिगर करते हैं, और कॉमेडी उसे रिसोल्व करने के लिए एक सामाजिक कॉन्ट्रास्ट डालती है। मौनी का परफॉर्मेंस एक फिनोमेनोलॉजिकल एक्सपीरियंस है।

    अरे भाई, ये बस एक फिल्म नहीं, ये एक डिस्कोर्डेंस रिसोल्यूशन एल्गोरिदम है।
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    anushka kathuria

    मई 10, 2025 AT 02:57
    मौनी रॉय के शारीरिक समर्पण को देखकर लगता है कि आज के समय में भी कलाकार अपने काम के प्रति अपना सम्मान बनाए रखते हैं। यह एक ऐसा उदाहरण है जिसे युवा पीढ़ी को अपनाना चाहिए।
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    Archana Dhyani

    मई 10, 2025 AT 17:18
    मैं जानती हूँ कि ये फिल्म बहुत अनोखी है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा कि इतनी लंबी शूटिंग वाली रातें असल में एक्ट्रेस के लिए कितनी नुकसानदेह हो सकती हैं? ये नहीं कि मैं उनकी मेहनत को कम नहीं करती, लेकिन इस तरह की एक्सप्लॉइटेशन को ग्लैमराइज़ करना ठीक नहीं है।

    हम एक्ट्रेस को हीरोइन बना रहे हैं, लेकिन उनके शरीर को एक उपकरण बना दिया जा रहा है। ये नहीं कि ये फिल्म खराब है - बल्कि हमारी सोच खराब है।
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    Aniket Jadhav

    मई 12, 2025 AT 13:02
    पेड़ पर लटकना तो बहुत मुश्किल लगता है, पर मौनी ने ऐसा किया तो ये बस दिल छू गया। बस एक बार फिल्म देख लो, आपको भी लगेगा कि ये फिल्म कितनी अलग है।
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    Guru Singh

    मई 14, 2025 AT 05:32
    फिल्म के अंदर जो भूत का किरदार है, वो असल में एक नारीवादी प्रतीक है। उसकी आवाज़ वो है जो हमारे इतिहास में दबी रही - अब वो बोल रही है। और मौनी ने उस आवाज़ को अपनी आवाज़ बना लिया।
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    Anoop Joseph

    मई 15, 2025 AT 19:23
    मौनी रॉय का ये रोल बहुत अच्छा लगा। धन्यवाद इस फिल्म के लिए।
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    rudraksh vashist

    मई 17, 2025 AT 14:27
    मैंने फिल्म देखी और बहुत प्रभावित हुआ। बाबा के साथ जो डायलॉग हैं, वो तो दिमाग हिला देंगे। मौनी का नाम अब बॉलीवुड के इतिहास में लिखा जाएगा।
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    Kajal Mathur

    मई 18, 2025 AT 12:21
    यह फिल्म एक व्यापक अंतर्राष्ट्रीय दर्शक वर्ग के लिए एक उत्कृष्ट उदाहरण है जो भारतीय नैरेटिव की गहराई और सांस्कृतिक जटिलता को अंतर्निहित रूप से प्रस्तुत करती है। मौनी रॉय का अभिनय एक आधुनिक भारतीय अर्थशास्त्र के लिए एक निर्णायक अंश है।

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