लेह में हिंसक प्रदर्शन: राज्यता का संघर्ष, 4 मौतें और बीजेपी कार्यालय व CRPF की आग

लेह में हिंसक प्रदर्शन: राज्यता का संघर्ष, 4 मौतें और बीजेपी कार्यालय व CRPF की आग
24 सितंबर 2025 8 टिप्पणि Kaushal Badgujar

प्रस्तावना: 24 सितंबर को लेह की सड़कों पर तनाव का उच्चतम बिंदु

लद्दाख के लीह में 24 सितंबर 2025 को हुई हिंसक घटनाओं में चार लोगों की मौत और 50 से अधिक घायल हुए। यह विरोध प्रदर्शन राज्यता और संविधान के छठे अनुसूची में लद्दाख को शामिल करने की दीर्घकालिक मांगों से उत्पन्न हुए थे। जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुकी के नेतृत्व में चल रहे 35‑दिन के हंगर स्ट्राइक के दौरान दो स्ट्राइकर्स के अस्पताल में भर्ती होने ने माहौल को और अधिक उथल‑पुथल भरा बना दिया।

हंगर स्ट्राइक का मूल उद्देश्य शांतिपूर्ण तरीके से सरकार को लद्दाख के लिये पूर्ण राज्य की मान्यता और स्वायत्तता देना था। परंतु दो स्ट्राइकरों की स्थिति बिगड़ने के बाद लेह एपेक्स बॉडी (LAB) की युवा शाखा ने शटडाउन की घोषणा की, जिससे सड़कों पर भीड़ इकट्ठा हो गई और तनाव का स्तर तेज़ी से बढ़ा।

हिंसा की बारीकी: बीजीपी कार्यालय और CRPF वाहनों पर आग, पुलिस की प्रतिक्रिया और प्रशासनिक कदम

भीड़ ने पहले लद्दाख ऑटोनॉमस हिल डवलपमेंट काउंसिल (LAHDC) की इमारत को तोड़-फोड़ किया, फिर बीजीपी के लीह कार्यालय पर बड़ी आग लगाई। कई प्रदर्शनकारियों ने इमारत के सामने पत्थर और ईंटें फेंकें, जिससे सुरक्षा बलों को गोलियों की बौछार का सामना करना पड़ा। इस बीच, CRPF के दो वाहनों को भी आग लगा दी गई; कुछ समूहों ने वाहनों के अंदर से भी संलाप करने की कोशिश की, जो सुरक्षा बलों के लिए बहुत खतरनाक स्थिति बन गई।

लद्दाख लाइटनेंट गवर्नर कविंदर गुप्ता ने तुरंत कर्फ्यू लागू किया, सेक्शन 144 का आदेश दिया और इंटरनेट को अंशतः बंद कर दिया। उन्होंने इस दहशत को "साजिश" कह कर दोष सभी हिंसक प्रदर्शनकारियों पर ठुकराया और आरोप लगाया कि उन्होंने ही मौतें और घटित हुए अमानवीय कृत्य किए। पुलिस और CRPF बलों ने डटे रहने के लिए घुटकली गैस, बैटन चार्ज और अंततः गोलीबारी की, जिसके परिणामस्वरूप 30 से अधिक पुलिस और CRPF कर्मी घायल हुए।

हिंसा के बाद, सोनम वांगचुकी ने सोशल मीडिया पर व्यक्त किया कि उनका शान्तिपूर्ण संदेश विफल हो गया है और उन्होंने 15‑दिन के हंगर स्ट्राइक को समाप्त कर दिया। उन्होंने युवाओं से अपील की कि वे इस अराजकता को रोकें, क्योंकि यह उनके संघर्ष को कमजोर कर रही है। उसी समय, सोशल मीडिया पर कई लोगों ने घायल लोगों के लिये रक्त दान करने का आह्वान भी किया, जिससे एकत्रित रक्त को अस्पतालों में भेजा गया।

राजनीतिक पहलुओं की बात करें तो यह विरोध लद्दाख के 2019 में केन्द्र शासित प्रदेश (UT) बनने के बाद से निरंतर चल रही मांगों का प्रतिबिंब है। कई स्थानीय नेता और समूह मानते हैं कि छठा अनुसूची लद्दाख को विशेष स्वायत्तता प्रदान करेगा, जो इस क्षेत्र की सामाजिक‑सांस्कृतिक विविधता को संरक्षित करने में मददगार होगा। इस मांग के पक्ष में कई पीआर शिखर सम्मेलन, पब्लिक मीटिंग और अनुक्रमित आंदोलन हुए हैं, परन्तु केंद्र सरकार ने अभी तक कोई ठोस जवाब नहीं दिया।

एक ओर जहां लद्दाख में वार्तालाप की पहलें जारी हैं, वहीं दूसरी ओर बढ़ते तनाव ने स्थानीय प्रशासन को अति-आतंकवादी कदम उठाने पर मजबूर कर दिया है। यह पहलें भविष्य में स्थानीय शांति एवं विकास को कैसे प्रभावित करेंगे, यह अभी स्पष्ट नहीं है, परन्तु वर्तमान स्थिति का संकेत है कि राजनीतिक समाधान के बिना हिंसा का चक्र जारी रह सकता है।

8 टिप्पणि

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    Paresh Patel

    सितंबर 25, 2025 AT 11:59
    इस तरह की हिंसा कभी नहीं होनी चाहिए थी। लेकिन समस्या ये है कि हमने बहुत देर तक सुनने की कोशिश की और फिर भी कुछ नहीं हुआ। अब जब लोग बेचारे बेकार हो गए हैं तो वो आग लगा देते हैं। ये बस एक चिल्लाहट है जो किसी को सुनने को मजबूर कर रही है।
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    anushka kathuria

    सितंबर 26, 2025 AT 19:28
    हिंसा कभी भी समाधान नहीं हो सकती। लेह के लोगों की मांगें वैध हैं, लेकिन उनके तरीके नहीं। सरकार को बातचीत का रास्ता अपनाना चाहिए, न कि डराने का।
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    Noushad M.P

    सितंबर 28, 2025 AT 13:18
    yeh sab log bhai logon ko kyun maar rahe hain ? kya koi sochta hai ki yeh sab khatam hone wala hai ? humein apne aap ko samajhna hoga warna yeh ghatnaayein phir bhi hongi
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    Sanjay Singhania

    सितंबर 30, 2025 AT 13:12
    इस संकट की जड़ में एक असंतुलित राजनीतिक आर्किटेक्चर है - जहां जनसाधारण की आवाज़ को अनुसूची-आधारित संवैधानिक संरक्षण से बाहर रखा गया है। लद्दाख की सांस्कृतिक एकाग्रता और पर्यावरणीय संवेदनशीलता को एक एकल राज्यीय फ्रेमवर्क में अनुकूलित करने का समय आ गया है। वर्तमान व्यवस्था एक निर्माणात्मक असमानता का प्रतीक है।
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    Renu Madasseri

    अक्तूबर 1, 2025 AT 21:23
    हम सब जानते हैं कि लद्दाख के लोगों की जरूरतें क्या हैं। बस एक बार उनकी आवाज़ सुन लो। अस्पताल में भर्ती हुए लोगों के लिए रक्तदान कर रहे हैं तो उनकी मांगों को भी सुन लो। ये सिर्फ राजनीति नहीं, इंसानियत का सवाल है।
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    Aniket Jadhav

    अक्तूबर 2, 2025 AT 00:38
    kuch log bolte hain ki yeh sab khatam ho jayega agar rajya ban jaye. lekin agar hum apne bhaiyon aur behnon ke saath khade honge toh koi bhi kuch nahi kar payega. humein ek doosre ke saath khade hone ki zaroorat hai.
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    Anoop Joseph

    अक्तूबर 2, 2025 AT 10:01
    हिंसा का जवाब हिंसा से नहीं। ये बात सबको पता है। लेकिन जब तक कोई बातचीत नहीं होगी, तब तक ये चक्र चलता रहेगा।
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    Kajal Mathur

    अक्तूबर 3, 2025 AT 08:12
    यह घटना एक अनियंत्रित सामाजिक असंतोष का प्रतीक है, जिसके पीछे राजनीतिक निर्णयों की अव्यवस्था और संस्कृतिक उपेक्षा का गहरा अंतर है। यहाँ के लोगों के लिए राज्यता का अर्थ केवल अधिकारों का विस्तार नहीं, बल्कि एक आत्मसम्मान का पुनर्स्थापन है।

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