ग्राहम थॉर्प – इंग्लैंड के यादगार दिग्गज बल्लेबाज़
अगर आप क्रिकेट के पुराने दौर के फैंस हैं, तो ‘ग्राहम थॉर्प’ का नाम सुनते‑सुनते आपकी यादों में रोमांच की लहर दौड़ जाती होगी। 1990‑2005 के बीच थॉर्प ने इंग्लैंड के लिए 100 से अधिक टेस्ट मैच खेले, कई बार निराशा भरे पिचों पर भी स्टेडियम को हिला दिया। लेकिन वह सिर्फ परफ़ॉर्मेंस नहीं, बल्कि टीम के अंदर का भरोसेमंद साइडर भी थे।
मुख्य आँकड़े और करियर हाइलाइट्स
थॉर्प के करियर में 7,690 रन की कुल, औसत 37.57 और 15 शतकों की शानदार रिकॉर्ड है। उनका सबसे यादगार इनिंग 1998 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ ग्रेगरी पेजेस में 200 नॉट-आउट थी, जो उस समय इंग्लैंड के लिए एक बड़ी जीत का कारण बना। इसके अलावा, थॉर्प ने 1993 में वेस्ट इंडीज़ के खिलाफ 117* बनाकर टीम को दोर्रा से बाहर निकाल दिया था। यह इनिंग खास तौर पर इसलिए सराहनीय थी क्योंकि वह बॉलर‑फ्रेंडली पिच पर खेल रहे थे।
डेस्टिनेशन टेस्ट में उनका योगदान कम नहीं था। 1999‑2000 में उसे इंग्लैंड की पहली जीत दिलाने में उनकी 100‑रन की इनिंग मुख्य कारण थी। जहाँ तक वन‑डे की बात है, थॉर्प ने 8 करोड़ के आँकड़े नहीं तोड़े, लेकिन 205 वन‑डे मैच में 5,446 रन, औसत 30.31, और पाँच फाइव की मदद से इंग्लैंड को कई जीत दिलाई।
एशेज में थॉर्प की अनूठी भूमिका
एशेज के मैदान पर थॉर्प का सर्वराउंडर जैसा प्रदर्शन रहा। 1995 में एशेज के पहले टेस्ट में उसके 119* ने इंग्लैंड को विजयी बनाते हुए उनके वैकल्पिक बल्लेबाज़ी को पुष्टि दी। अगली बार, 1997‑98 में वह दो रन नहीं कर पाए, पर उनका धैर्य और तकनीक अक्सर टीम को स्थिरता देती थी। अगर आप एशेज को ‘टेस्ट क्रिकेट की असली परीक्षा’ मानते हैं, तो थॉर्प की 20‑plus टेस्ट एशेज में 12‑सेंचुरीं की औसत 44.42 इंग्लैंड के लिए एक बड़ी उपलब्धि है।
ऐसे कई मौके थे जब थॉर्प ने दबाव में खुद को साबित किया: 1999 में केवल 131 गेंदों में 106 रन बनाकर बॉलर‑पैकेज को खा रहा था। इस तरह के इनिंग्स ने उन्हें इंग्लैंड के ‘सहनशीलता के प्रतीक’ के रूप में स्थापित किया।
अब थॉर्प रिटायर हो चुके हैं, लेकिन उनका अनुभव अभी भी इंग्लैंड क्रिकेट में जीवित है। 2020 में उन्होंने इंग्लैंड के एशेज टीम को कोचिंग सलाह दी और युवा बॉलरों को तकनीकी टिप्स देने में मदद की। उनकी लिखी पुस्तक ‘डैन एवरी थ्रेट फ़र द़ यॉन्ग बॉलर’ आज के स्पिनर‑बोलर के लिये गाइडबुक बन गई है।
यदि आप युवा खिलाड़ी हैं या सिर्फ़ क्रिकेट का शौक़ीन, तो थॉर्प के करियर से कई चीजें सीख सकते हैं: मिज़ाज रुकाव में बेमानी नहीं होता, टेक्नीक पर भरोसा रखो, और हर पिच पर अपनी जगह बनाओ। उनकी कहानी को पढ़कर आप समझेंगे कि असफलता की घड़ी में भी जीत का रास्ता ढूँढ़ना कितना ज़रूरी है।
ग्राहम थॉर्प की यात्रा हमें यह सिखाती है कि लम्बी अवधि में निरंतरता और टीम‑स्पिरिट ही सच्ची जीत का रहस्य हैं। चाहे आप एक वयस्क प्रोफ़ेशनल खिलाड़ी हों या बाड़े‑बाग़ी अड़ियल फैंस, थॉर्प की कहानी आपके लिए प्रेरणा बन सकती है। अगली बार जब इंग्लैंड की टीम फील्ड में उतरें, तो इस दिग्गज की याद जरूर करें – शायद वही अनदेखा ट्रिक आपको भी जीत दिला दे।