मनमोहन सिंह: भारत के आर्थिक परिवर्तन की कहानी
जब मनमोहन सिंह, 1991 से 2014 तक दो बार भारत के प्रधानमंत्री और प्रमुख आर्थिक रणनीतिकार, जिन्होंने बाजार‑उन्मुख नीति को गति दी. Also known as डॉ. मनमोहन सिंह, he shaped modern India’s fiscal outlook.
उनका सबसे बड़ा योगदान आर्थिक सुधार, 1991 के राजकोषीय नीति परिवर्तन जो विदेशी निवेश, हल्की दरें और निजीकरण को बढ़ावा दिया है। यह सुधार मनमोहन सिंह द्वारा लागू किए गए कई कदमों का परिणाम था: आयात शुल्क घटाना, विदेशी शेयरों की अनुमति, और वित्तीय बाजारों का उदारीकरण। इसी समय वित्त मंत्रालय, सहयोगी विभाग जो बजट, कर नीति और सरकारी खर्चों की देखरेख करता है ने नई राजस्व रणनीतियों को अपनाया, जिससे सार्वजनिक घाटा घटा और निवेशकों का भरोसा बढ़ा।
मुख्य पहल और उनका प्रभाव
इन सुधारों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को तेज़ी से बढ़त दिलाई। भारतीय अर्थव्यवस्था, विकासशील देश जिसमें सेवा, विनिर्माण और कृषि का मिश्रण है ने 1990‑2000 के दशक में औसत वार्षिक 6‑7% की बढ़त हासिल की। ऐसा इसलिए क्योंकि मनमोहन सिंह ने “खुली बाजार” की नीति को अपनाया, जिससे विदेशी कंपनियों का प्रवाह बढ़ा और घरेलू उद्यमियों को नया पूँजी स्रोत मिला।
वित्त मंत्रालय का बजट प्रबंधन लोकसभा, भारत का निचला सदन जहाँ वित्तीय बिल पारित होते हैं के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़ा। संसद में बहुमत सुनिश्चित करने के बाद, मनमोहन सिंह ने कई वित्तीय बीमा योजनाएँ लॉन्च कीं, जैसे कि प्रधानमंत्री जनधन योजना, जो बैंकों के जमा आधार को मजबूत किया। ये कदम सीधे दिखाते हैं कि "वित्त मंत्रालय नीति निर्माण के लिये जिम्मेदार है" और "लोकसभा संसदीय बहुमत प्रदान करती है" – हमारे तीन प्रमुख सेमांटिक ट्रिपल्स।
साथ ही, सामाजिक सुरक्षा के क्षेत्र में भी बदलाव आया। राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना, ग्रामीण विकास कार्यक्रम और शिक्षा पहलें इस अवधि में तेज़ी से लागू हुईं। इन पहलों ने गरीबी घटाने में सहारा दिया, जिससे आर्थिक वृद्धि का लाभ अधिक लोगों तक पहुँचा।
समय के साथ, इन नीतियों का प्रभाव न केवल आंकड़ों में दिखा, बल्कि सामान्य भारतीय की डेली लाइफ में भी परिलक्षित हुआ। बैंकिंग खाता खोलना, मोबाइल भुगतान, और छोटे व्यवसायों के लिए क्रेडिट आसानी से मिलना अब कहावत बन गया था। यही कारण है कि आज भी लोग मनमोहन सिंह के नाम को आर्थिक उन्नति की कहानी से जोड़ते हैं।
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