उत्तराखंड में भारी बारिश और तूफानी हवाएं: मानसून तैयारियों की पोल खुली

उत्तराखंड में भारी बारिश और तूफानी हवाएं: मानसून तैयारियों की पोल खुली
20 जून 2025 18 टिप्पणि Kaushal Badgujar

उत्तराखंड में मानसून की पहली बारिश: तैयारियों की असल तस्वीर

उत्तराखंड में 16 जून 2025 की सुबह जब आसमान में काले बादल छाए और पहली बारिश शुरू हुई, तो लोगों को थोड़ी राहत जरूर मिली लेकिन प्रशासन के दावों की असलियत भी उजागर हो गई। उत्तराखंड के कई पहाड़ी और मैदानी इलाकों में तेज बारिश के साथ-साथ 30 से 40 किमी/घंटा की रफ्तार वाली हवाओं और बिजली की चमक के कारण जहां मौसम सुहाना हो गया, वहीं जलभराव और सड़क बाधाओं की घटनाएं भी आ गईं।

गर्मी से जूझ रहे लोगों के लिए तापमान का गिरना सुकूनदायक रहा; दरअसल, कई जिलों में पारा 20°C से 36°C के बीच रहा। लेकिन, जैसे ही तेज बारिश का दौर बढ़ा, कई नगर निकायों की मानसून की तैयारी की पोल भी खुलती चली गई। सबसे बड़ी समस्या जल निकासी की व्यवस्था में नजर आई जहां थोड़े से पानी में ही गलियां और सड़कें पानी से भर गईं और लोगों को आवाजाही में खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ा।

आईएमडी का अलर्ट और प्रशासन की चुनौतियां

आईएमडी का अलर्ट और प्रशासन की चुनौतियां

आईएमडी ने राज्य के करीब चार जिलों के लिए पहले ही 'येलो अलर्ट' जारी कर दिया था। स्थानीय प्रशासन ने भी संवेदनशील इलाकों के लोगों को सचेत रहने की सलाह दी। चौंकाने वाली बात यह रही कि कई जगहों पर आपदा राहत दल की तैनाती के बावजूद स्थानीय लोगों तक समय पर सूचना या तत्काल सहायता नहीं पहुँच सकी। सवाल यह भी उठे कि आपातकालीन रिस्पांस के नाम पर अब तक सिर्फ कागजी योजनाएँ ही प्रभावी क्यों हैं?

इस बीच, महाराष्ट्र, गुजरात, कोकण और गोवा में आईएमडी ने भारी बारिश की भविष्यवाणी की, लेकिन उत्तराखंड में मामूली से मध्यम बारिश की ही संभावना जताई गई थी। पहाड़ी इलाकों में अक्सर होते भूस्खलन और अचानक नालों के उफान को देखते हुए विशेष सतर्कता की जरूरत महसूस की गई। पर राहत की बात यह रही कि 16 जून तक कोई बड़ा हादसा या जनहानि की खबर सामने नहीं आई।

  • बारिश के साथ बिजली गिरने की घटनाएँ दर्ज की गईं, लेकिन अब तक किसी के हताहत होने की जानकारी नहीं आई।
  • शक्तिशाली हवाओं ने पेड़ गिराए और कुछ इलाकों में बिजली आपूर्ति ठप हो गई।
  • प्रशासन ने जलभराव और फिसलन वाले रास्तों की तुरंत सफाई के निर्देश जारी किए।

IMD की चेतावनी के बाद कई इलाकों में स्कूल-कॉलेज भी अस्थायी तौर पर बंद किए गए। स्थानीय लोगों ने बताया कि बारिश से राहत तो मिली, मगर बारिश के पहले ही दिन नगर प्रशासन की कच्ची तैयारियां सामने आ गईं। गांव-देहात तक में तेज बारिश से कच्चे रास्ते बह गए और खेतों में पानी भर गया। बाजारों में छोटे दुकानदारों को अपनी दुकानों में पानी घुसने से नुकसान उठाना पड़ा।

पूर्व की चूक और तैयारियों की कमी पर अब सवाल उठ रहे हैं। लोग पूछ रहे हैं कि क्या हर साल आई इसी बारिश के लिए प्रशासन वाकई में तैयारी करता है या सिर्फ मीटिंग और प्रेस कांफ्रेंस ही होती है? बारिश की असली परीक्षा अब आने वाले दिनों में होगी, जब मानसून पूरी तरह सक्रिय हो जाएगा और परख होगी कि स्थानीय निकाय और प्रशासन की व्यवस्थाएं कितना काम करती हैं।

18 टिप्पणि

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    Aniket Jadhav

    जून 21, 2025 AT 02:22
    बारिश आई तो राहत मिली पर गलियां पानी में डूब गईं... ये तो हर साल का खेल है।
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    Renu Madasseri

    जून 22, 2025 AT 16:15
    मैं उत्तराखंड की एक छोटी सी गांव से हूं, यहां बारिश के बाद नाले बंद हो जाते हैं। कोई नहीं सुधारता, सिर्फ चेतावनी देते हैं। असली मदद तो घर घर जाकर करनी चाहिए।
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    rudraksh vashist

    जून 23, 2025 AT 17:10
    हां भाई, ये सब तो बस एक चक्र है। बारिश आती है, पानी भर जाता है, लोग शिकायत करते हैं, फिर भूल जाते हैं। अगले साल फिर वही।
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    Archana Dhyani

    जून 23, 2025 AT 18:43
    अरे ये तो बस एक नियमित अपराध है। जब तक हम लोग इसे 'प्राकृतिक आपदा' नहीं कहना बंद कर देंगे, तब तक ये बस एक बेकार की बातचीत रहेगी। प्रशासन तो बस बजट खर्च करने के लिए तैयार है, न कि जीवन बचाने के लिए।
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    Guru Singh

    जून 25, 2025 AT 14:00
    मैंने 2021 में गैर-आपदा योजना की रिपोर्ट देखी थी। उसमें सारे नाले डिजाइन किए गए थे, लेकिन निर्माण नहीं हुआ। अब भी वही डिजाइन दिखते हैं।
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    Sahaj Meet

    जून 25, 2025 AT 19:53
    मैंने देखा कि गोरखपुर में भी ऐसा ही हुआ था। लेकिन वहां लोगों ने खुद ही नाले साफ किए। अगर हम सब थोड़ा सा जिम्मेदारी लें, तो कुछ बदल सकता है।
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    Madhav Garg

    जून 27, 2025 AT 03:24
    ये सब तो अब बस एक रूटीन बन चुका है। मानसून आता है, फिर बारिश होती है, फिर लोगों के घरों में पानी आता है, फिर प्रेस कॉन्फ्रेंस, फिर फिल्म बनती है, फिर भूल जाते हैं।
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    Sumeer Sodhi

    जून 27, 2025 AT 12:29
    अरे ये तो बस एक बड़ा धोखा है। जो लोग ये बारिश की खबर देते हैं, वो खुद घरों में बिजली का बिल नहीं भर पाते। ये सब तो बस एक नाटक है।
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    Vinay Dahiya

    जून 28, 2025 AT 19:30
    क्या आपने कभी देखा है कि जिला कलेक्टर का ऑफिस कितना शानदार है? और गांव में जलभराव की तस्वीरें कैसे बनती हैं? ये तो बस एक द्वैत है।
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    Sai Teja Pathivada

    जून 29, 2025 AT 09:08
    ये सब एक बड़ा नियोन रिमोट कंट्रोल वाला खेल है। जब भी बारिश होती है, तो कुछ लोग फोन पर बैठकर अलर्ट भेजते हैं। और जब लोग मरते हैं, तो उनकी तस्वीरें वायरल हो जाती हैं। ये तो एक एल्गोरिदम है।
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    Antara Anandita

    जून 30, 2025 AT 08:47
    मैंने अपने गांव में एक छोटा सा नाला साफ किया है। दो महीने तक पानी नहीं भरा। अगर हर कोई थोड़ा करे, तो बहुत बदल सकता है।
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    Gaurav Singh

    जून 30, 2025 AT 15:17
    अरे ये तो बस एक बड़ा ड्रामा है जो हम सब खेल रहे हैं। जब तक हम इसे 'आपदा' नहीं कहेंगे, तब तक कोई नहीं सुनेगा।
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    Priyanshu Patel

    जुलाई 1, 2025 AT 07:27
    मैं भी अपने गांव में एक छोटा सा ग्रुप बनाया है। हर हफ्ते एक दिन नाले साफ करते हैं। बस थोड़ा सा एकता चाहिए। जब तक हम खुद नहीं उठेंगे, तब तक कोई नहीं आएगा।
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    ashish bhilawekar

    जुलाई 2, 2025 AT 06:29
    ये तो बस एक बड़ा नाटक है! जब तक हम अपने घर के बाहर का गंदा पानी नहीं निकालेंगे, तब तक कोई बारिश भी नहीं बचाएगा। ये तो हमारी नजर की कमी है, न कि सरकार की।
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    Vishnu Nair

    जुलाई 3, 2025 AT 14:06
    यहाँ एक गहरा सिस्टमिक फेलियर है। निर्माण लाइसेंस, भूमि उपयोग नीति, जलवायु अनुकूलन योजना, और नगर नियोजन अधिनियम के बीच का अंतराल इतना विशाल है कि यहाँ कोई भी निकाय अपने कर्तव्य का पालन नहीं कर पा रहा। यह एक डिजिटल गवर्नेंस के असफलता का उदाहरण है।
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    Kamal Singh

    जुलाई 4, 2025 AT 04:10
    मैं एक पुराना गांव वाला हूं। जब मैं छोटा था, तो हर घर में एक छोटा सा नाला होता था। अब कोई नहीं बनाता। लेकिन अगर हम फिर से वही तरीका अपनाएं, तो ये सब ठीक हो जाएगा। बस थोड़ा धैर्य चाहिए।
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    Anoop Joseph

    जुलाई 4, 2025 AT 06:39
    हमें अपने घर के आसपास साफ-सफाई करनी होगी। बस इतना ही।
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    Kajal Mathur

    जुलाई 5, 2025 AT 19:46
    मुझे लगता है कि इस समस्या का समाधान केवल एक बहुआयामी नीतिगत दृष्टिकोण से ही संभव है, जिसमें नगरीय अनुशासन, जलवायु अनुकूलन और सामुदायिक सहभागिता का समन्वय हो।

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