अहोर अष्टमी 2025: 13 अक्टूबर को शुभ योग, पूजन मुहूर्त और कथा

अहोर अष्टमी 2025: 13 अक्टूबर को शुभ योग, पूजन मुहूर्त और कथा
14 अक्तूबर 2025 1 टिप्पणि Kaushal Badgujar

जब अहोर अष्टमी 2025भारत मनाया जाएगा, तो माँ‑बेटी का बंधन फिर एक बार आध्यात्मिक तीव्रता से जगमगा उठेगा। यह पर्व 13 अक्टूबर, 2025 (सोमवार) को ऑक्टोबर के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को पड़ता है, और इस वर्ष ‘रवि योग’ की अतिरिक्त ज्योतिषीय शक्ति इसे और भी खास बना देती है।

पौराणिक महत्व और आहोरी मात का व्रत कथा

कथा के अनुसार, आहोरी मात (जो आहोरी मात के नाम से जानी जाती हैं) ने अपने दो भाई‑बहनों को बचाने के लिये जल‑व्रत किया था। ऐसा माना जाता है कि यदि माँ इस व्रत को नीरजा (बिना जल) रखती है, तो उसकी संतान का आयु‑दायु लंबा हो जाता है। इस लंदन‑बाली कथा को प्रशांत उत्तर भारत में पीढ़ी‑दर‑पीढ़ी सुनाया जाता रहा है।

2025 के पञ्चांग विवरण

अलग‑अलग समाचार पत्रों ने तिथि‑समय में थोड़ा‑बहुत अंतर दिखाया है, पर मुख्य बिंदु एक‑जैसे हैं। अमर उजाला के पञ्चांग के अनुसार, कृष्ण पक्ष की अष्टमी का प्रारम्भ 13 अक्टूबर 2025 को दोपहर 12:26 बजे (IST) हुआ और 14 अक्टूबर 2025 को सुबह 11:11 बजे समाप्त होगा। वहीं जागरन का हिसाब थोड़ी देर पहले, यानी रात 12:24 बजे से शुरू बताता है। यह अंतर तुलनात्मक रूप से मामूली है, पर भक्तों के लिए सही मुहूर्त चुनना महत्वपूर्ण रहता है।

पूजन मुहूर्त एवं रवि योग का प्रभाव

पूजन का सबसे शुभ समय, अर्थात् मुहूर्त, ड्रिक पंचांग के नवाब दिल्ली के आँकड़ों के अनुसार, शाम 5:53 बजे से 7:08 बजे तक है – कुल मिलाकर 1 घंटे 15 मिनट। इस दौरान माँ‑ए‑आहोरी मात के लिये अर्चना, आरती और कथा सुनना अत्यधिक फलदायक माना जाता है। लाइव हिन्दुस्तान ने बताया कि इस अवधि में ‘रवि योग’ का उत्सर्जन ऊर्जा को संचारित करता है, जिससे व्रत की शक्ति और भी प्रबल हो जाती है।

व्रत विधि, सामग्री और स्थानीय विविधताएँ

परम्परागत रूप से माँ सुबह सूर्योदय से लेकर चंद्र rising तक (या तारे दिखने तक) जल‑व्रत रखती हैं। कुछ क्षेत्र, ख़ासकर उत्तर प्रदेश और हरियाणा में, महिलाएँ तारा‑दर्शी के बाद व्रत तोड़ लेती हैं, जबकि दिल्ली‑कॉलोनी में कई लोग चंद्र दर्शन की प्रतीक्षा करते हैं – जो अक्सर देर‑रात तक रहती है।

व्रत में उपयोग होने वाली प्रमुख सामग्रियाँ हैं: कुमकुम, चावल, फूल, धूप, दीया, साथ ही मीठे फल और मिठाइयाँ। इन सभी को आहोरी मात की प्रतिमा (जो अक्सर दीवार या अंगण में पेंट की जाती है) के सामने व्यवस्थित किया जाता है। फिर 5:53‑7:08 PM के मुहूर्त में आहोरी मात की आरती गाते हुए, ‘अर्घ्य’ (जल) तारा‑दर्शी को चढ़ाया जाता है।

राज्य‑वार उत्सव और सामाजिक प्रभाव

राज्य‑वार उत्सव और सामाजिक प्रभाव

अहोर अष्टमी उत्तर भारत में खासा जोश‑जबर से मनाई जाती है। जंsatta के अनुसार, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब के शहरों में इस दिन माँ‑बच्चे के जोड़ को लेकर कई सामाजिक कार्यक्रम सह-होते हैं। महिलाएँ सामुदायिक हॉल में इकट्ठा होकर कथा‑सत्र, स्वादिष्ट व्रत‑भोजन और बाल‑सुरक्षा पर जागरूकता वार्ता भी आयोजित करती हैं।

व्यापारिक दृष्टिकोण से, इस दिन का एक लंबा आर्थिक असर भी है। मिठाई की दूकानों, फूल‑वाले, कपड़े‑सजावट एवं धार्मिक सामान की दुकानों का कारोबार दो‑तीन गुना बढ़ जाता है। कई स्थानीय शॉर्ट‑टर्म इम्प्लायमेंट (जैसे किचन असिस्टेंट) भी इस मौके पर अतिरिक्त वेतन पाते हैं।

आगे क्या अपेक्षित है?

जैसे ही इस वर्ष का अहोर अष्टमी समाप्त होगा, पंचांग विशेषज्ञ बताते हैं कि अगला अष्टमी 2026 में अक्टूबर‑नवम्बर के बीच आएगा, पर सटीक तिथि अभी तय नहीं हुई है। इस बीच, माँ‑बच्चे के स्वास्थ्य और कल्याण को लेकर सरकारी स्वास्थ्य विभाग ने ‘बच्चा स्वास्थ्य अभियान’ की घोषणा की है, जिससे इस धार्मिक प्रथा के सामाजिक पहलू और भी सुदृढ़ होने की संभावना है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

अहोर अष्टमी क्यों विशेष माना जाता है?

यह पर्व माँ‑बच्चे के बंधन को सुदृढ़ करने के लिये परम्परागत रूप से जल‑व्रत रखे जाने की अनूठी परंपरा से जुड़ा है, और इस साल रवि योग के कारण इसका आध्यात्मिक प्रभाव और भी बढ़ गया है।

पूजन मुहूर्त कब है और क्यों इतना महत्त्वपूर्ण?

मुहूर्त 13 अक्टूबर 2025 को शाम 5:53 PM से 7:08 PM (IST) तक है। इस समय सूर्य एवं चंद्र के विशेष योग से ऊर्जा का संचार अधिक होता है, जिससे व्रती माँ‑ए‑आहोरी मात को अधिक लाभ मिलता है।

व्रत कब टूटना चाहिए – तारा‑दर्शी या चंद्र‑उदय?

परम्परागत रूप से दोनों ही मान्य हैं। उत्तर प्रदेश‑हरियाणा में तारे दिखते ही व्रत तोड़ते हैं, जबकि दिल्ली‑कॉलोनी में कई लोग चंद्र दर्शन का इंतज़ार करते हैं। दोनों ही तरीकों से आहोरी मात की कृपा प्राप्त होती है।

अहोर अष्टमी के आर्थिक प्रभाव क्या हैं?

भोजन, मिठाई, फूल, पूजा‑सामग्री आदि की मांग में 2‑3 गुना वृद्धि होती है। कई छोटे‑बड़े व्यापारियों को इस अवसर पर अतिरिक्त आय मिलती है, एवं अक्सर अस्थायी रोजगार भी उत्पन्न होते हैं।

अगले वर्ष का अहोर अष्टमी कब पड़ेगा?

पंचांग विशेषज्ञ अभी 2026 की तिथि का हिसाब नहीं दे पाए हैं, पर यह अक्टूबर‑नवम्बर के बीच होगा। आध्यात्मिक और सामाजिक दोनों पहलुओं से यह महत्व बना रहेगा।

1 टिप्पणि

  • Image placeholder

    Thirupathi Reddy Ch

    अक्तूबर 14, 2025 AT 00:14

    आजकल के लोग अहोर अष्टमी को बस एक बड़िया व्यावसायिक अवसर मानते हैं, आध्यात्मिक मूल को तोड़‑फोड कर। इस त्योहार को व्यावसायिक लाभ के लिए री‑ब्रांड किया जा रहा है, जबकि असली उद्देश्य माँ‑बच्चे के बंधन को सुदृढ़ करना है। हमें याद रखना चाहिए कि शुद्ध व्रत का पालन केवल व्यक्तिगत आध्यात्मिक शक्ति के लिए है, न कि समाज के पैकेजिंग के तहत।
    इसलिए सावधान रहें, अन्यथा धार्मिक भावना वस्तु‑व्यापार के तहत ध्वस्त हो सकती है।

एक टिप्पणी लिखें